अगर कोई पंजीकृत वसीयत मौजूद है, तो 50 साल बाद भी वह वैध होगी। वसीयत का पंजीकरण करने से यह सुनिश्चित होता है कि वह सार्वजनिक रिकॉर्ड में दर्ज हो जाती है और इसे चुनौती देना मुश्किल हो जाता है। इसलिए, 50 साल बाद भी, संपत्ति उसी व्यक्ति या व्यक्तियों को दी जाएगी जिन्हें वसीयत में नामित किया गया है।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वसीयत को चुनौती दी जा सकती है, भले ही वह पंजीकृत हो। अगर कोई व्यक्ति मानता है कि वसीयत अवैध है, तो वह अदालत में चुनौती दे सकता है।
वसीयत को चुनौती देने के आधारों में शामिल हैं:
- वसीयतकर्ता की मानसिक क्षमता की कमी
- वसीयत पर दबाव या धोखाधड़ी
- वसीयत में गलतियाँ या अस्पष्टता
अगर अदालत वसीयत को अवैध घोषित करती है, तो संपत्ति उत्तराधिकार कानूनों के तहत विभाजित की जाएगी।
50 साल बाद संपत्ति किसको दी जाएगी, यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वसीयत में क्या प्रावधान हैं। उदाहरण के लिए, अगर वसीयत में कहा गया है कि संपत्ति को एक निश्चित व्यक्ति या व्यक्तियों को दिया जाना है, तो संपत्ति उन्हें दी जाएगी, भले ही वे जीवित न हों। इसके विपरीत, अगर वसीयत में कहा गया है कि संपत्ति को वसीयतकर्ता के बच्चों को दिया जाना है, तो संपत्ति उनके जीवित बच्चों को दी जाएगी।
कुल मिलाकर, अगर कोई पंजीकृत वसीयत मौजूद है, तो 50 साल बाद भी वह वैध होगी। हालांकि, वसीयत को चुनौती दी जा सकती है, और संपत्ति उत्तराधिकार कानूनों के तहत विभाजित की जा सकती है।
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