मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया एप्लीकेशन) एक्ट 1937 के अनुसार भारत में मुसलमानों को चार बार शादी करने का अधिकार है।
हालाँकि, 2018 में खुर्शीद अहमद खान बनाम यूपी राज्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “हालांकि मुसलमानों के व्यक्तिगत कानून में चार पत्नियाँ रखने की अनुमति है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि एक से अधिक पत्नियाँ रखना धर्म का हिस्सा है। न तो इसे धर्म द्वारा अनिवार्य बनाया गया है और न ही यह अंतरात्मा की स्वतंत्रता का मामला है।”
रिट याचिकाएं पहले भी दायर की गई हैं, जिसमें “मुस्लिम पर्सनल लॉ को घोषित करने की मांग की गई है जो बहुविवाह को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के उल्लंघन के रूप में अमान्य घोषित करने की अनुमति देता है”।
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इस्लाम में, पुरुषों को चार शादियाँ करने की अनुमति है, लेकिन महिलाओं को केवल एक ही। यह नियम कुरान में क़ुरआन 4:3 में दिया गया है।
इस आयत में कहा गया है:
“और यदि तुम डरते हो कि तुम न्याय नहीं कर सकोगे तो एक ही पत्नी ही तुम्हारे लिए बेहतर है।”
इस आयत का अर्थ यह है कि पुरुषों को केवल एक ही पत्नी रखनी चाहिए, जब तक कि वे न्याय करने में सक्षम न हों। न्याय करने से तात्पर्य यह है कि सभी पत्नियों के साथ समान रूप से व्यवहार किया जाए।
हालांकि, इस्लाम में बहुविवाह को एक अपवाद के रूप में देखा जाता है, न कि नियम के रूप में। इसे केवल तभी अनुमति दी जाती है जब पुरुष न्याय करने में सक्षम हो और सभी पत्नियों की देखभाल करने में सक्षम हो।
भारत में, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) ऐक्ट, 1937 के तहत, पुरुषों को चार शादियाँ करने की अनुमति है, लेकिन इसके लिए उन्हें स्थानीय मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती है।
कुछ मुस्लिम देशों में, बहुविवाह को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। उदाहरण के लिए, तुर्की में, 1926 में
बहुविवाह को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था।
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