वे आम तौर पर काफी भारी जानवर होते हैं। वे एक भारी खोल लेकर चलते हैं और अपने रिश्तेदारों की तुलना में उनकी खोपड़ी हड्डी के विशाल खंड हैं।
उनका खोल सिर्फ शरीर पर आवरण नहीं है, यह कंकाल से जुड़ा हुआ है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पेक्टोरल और पेल्विक मेर्डल से जुड़ा हुआ है और इसमें हड्डियां शामिल हैं जो प्रमुख अंग जोड़ों को बनाती हैं। उनकी गति की सीमा काफी सीमित है। अपेक्षाकृत छोटे पैर छेद वाले बैरल पहनकर दौड़ने की कल्पना करें। इसके अलावा, आप अपने पैरों से सांस लेते हैं (कछुए, स्पष्ट कारणों से, डायाफ्राम के साथ सांस लेने के लिए अपनी पसलियों का विस्तार नहीं कर सकते हैं)।
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कछुआ इतना धीरे चलता है क्योंकि उसके पास कई शारीरिक विशेषताएं हैं जो उसे तेज़ चलने से रोकती हैं।
इनमें शामिल हैं:
भारी कवच: कछुए का कवच उसकी रक्षा करता है, लेकिन यह उसे भारी भी बनाता है। भारी कवच के कारण
उसे अपनी गति को कम करना पड़ता है।
छोटे पैर: कछुए के पैर छोटे होते हैं, जो उसे अपने शरीर का भार उठाने में मदद करते हैं। हालांकि, छोटे पैर उसे तेज़ चलने से भी रोकते हैं।
धीमी मेटाबॉलिज्म: कछुए के पास धीमी मेटाबॉलिज्म होता है, जिसका अर्थ है कि उन्हें ऊर्जा की कम आवश्यकता होती है। धीमी मेटाबॉलिज्म के कारण उन्हें तेज़ चलने की आवश्यकता नहीं होती है।
कछुए के लिए धीमी गति एक लाभ भी हो सकती है।
कछुए आमतौर पर छोटे शिकारियों का शिकार होते हैं। धीमी गति के कारण उन्हें शिकारियों से बचने में आसानी होती है।
कछुए की प्रजाति के आधार पर उसकी गति भिन्न हो सकती है। कुछ कछुए, जैसे कि रेगिस्तानी कछुए,
अन्य कछुओं की तुलना में तेज़ चल सकते हैं। यह उनकी आवास और आहार की आवश्यकताओं के कारण होता है। रेगिस्तानी कछुओं को अपने भोजन की तलाश में लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, इसलिए उन्हें तेज़ चलने की आवश्यकता होती है।
कुल मिलाकर, कछुआ की धीमी गति उसके शारीरिक और पारिस्थितिकीय कारकों के संयोजन का परिणाम
है।