अल्कोहल या शराब पीने से हमारे शरीर के कई organs पर फर्क पड़ता है इनमें से एक ऐसा ऑर्गन है लीवर। जो लोग ज्यादा मात्रा में शराब पीते हैं उन्हें लीवर खराब होने का खतरा होता है। ऐसे कई लोग है जो बीयर पीते हैं पर शराब नहीं पीते हैं। यह मैं स्पष्ट कहना चाहूँगी की बियर, व्हिस्की, वोडका, रम, शैंपेन, या वाईन इन सब में अल्कोहल होता है। यदि ज्यादा मात्रा में लिया जाए इसे लीवर खराब हो सकता है।
अगला प्रश्न है कि कितनी मात्रा में शराब पीने से लीवर खराब हो सकता है। यह देखा गया है पुरुषों और महिलाओं में यह मात्रा अलग है। जो पुरुष रोजाना 40 से 50 ग्राम से ज्यादा शराब पीते हैं उन्हें लीवर खराब होने का रिस्क होता है। दूसरी तरफ जो महिलाएं रोजाना 20 से 30 ग्राम लेती हैं इससे उनका लिवर खराब होने का रिस्क होता है। अगर हम बियर की बड़ी बोतल देखे तो उसके अंदर 50 ग्राम तक अल्कोहल होती है। व्हिस्की के एक छोटे पेग मे 12 ग्राम और व्हिस्की के बड़े बैग में लगभग 4 ग्राम अल्कोहल होती है।
यह देखा गया है कि सभी शराब पीने वाले व्यक्तियों का लिवर खराब नहीं होता है। कुछ अंतर होते हैं जो डिसाइड करते हैं कि क्या लीवर खराब होगा या नहीं जैसे देखा गया है। जो लोग ज्यादा मोटे होते हैं जिनका वजन ज्यादा होता है। उन्हें लीवर की बीमारी होने का रिस्क ज्यादा होता है और यह लोग शराब पीते हैं तो लिवर की बीमारी होने का रिस्क कई गुना बढ़ जाता है। इसी तरह जो लोग शराब के साथ स्मोकिंग भी करते हैं इससे उनका लिवर खराब होने का रिस्क ज्यादा होता है। यदि किसी को हेपेटाइटिस बी और c के इंफेक्शन है जो की एक वायरस है ऐसे व्यक्ति ऐल्कहॉल ज्यादा मात्र मे लेते हैं इससे भी उनका लिवर खराब होने का रिस्क होता है। यह देखा गया है की शराब के साथ अच्छी डाइट ना ली जाए। अगर डाइट के अंदर विटामिन और मिनरल्स कम है या प्रोटीन कम है या खराब वाले फैट ज्यादा है।
ऐसे लोगों का भी लिवर खराब होने का रिस्क होता है। आइए जानते हैं कि शराब से हमारे लीवर पर क्या फर्क पड़ता है। अल्कोहल या शराब पीने से लीवर में चार तरह की बीमारी हो सकती है। पहली है फैटी लीवर। अगर फैटी लीवर को कंट्रोल ना किया जाए तो ऐसे मरीजों को एल्कोहलिक हेपेटाइटिस हो जाता है जो कि आगे जाकर सिरोसिस में कन्वर्ट हो जाता है। कुछ मरीजों को लिवर कैंसर का रिस्क भी हो सकता है। तो सबसे पहले जो लोग शराब पीते हैं उनके लीवर के अंदर फैट ज्यादा हो जाता है। जब हम ultrasound करवाते हैं तो उसमें लीवर सफेद हो जाता है। इस कंडीशन को हम फैटी लीवर बोलते हैं।
फैटी लीवर होने के बाद मरीजों को पेट के ऊपरी हिस्से में या राइट साइड में दर्द हो सकता है। कुछ मरीजों को जरा थकान हो सकती है और कई बार यह टोटली साइलेंट भी हो सकता है। जब मरीज का ultrasound करवाते हैं तो लीवर में फैट ज्यादा नजर आता है। और जब ब्लड टेस्ट होता हैं कुछ मरीजों के अंदर डिलीवर के एंजाइम्स SGOT या SGPT की मात्रा ज्यादा होती है। Alcoholic fatty liver वाले मरीज में SGOT की मात्र SGPT से ज्यादा हो सकती है। और यदि हम फैटी लीवर को ट्रीटका इलाज नहीं करते हैं ऐसे मरीजों को एल्कोहलिक हेपेटाइटिस हो जाता है।
Alcoholic हेपेटाइटिस में लीवर का साइज बढ़ जाता है और यह थोड़ा कड़ा हो जाता है। ऐसे मरीजों को पीलिया हो जाता है आंखें पीली हो जाती हैं और पेशाब भी पीला आता है। जब मरीज अपना test करवाता हैं ब्लड के अंदर बिलरूबिन की मात्रा ज्यादा होती है और यदि एल्कोहलिक हेपेटाइटिस को कंट्रोल नया किया जाए ऐसे मरीजों को सिरोसिस भी हो सकता है। प्रोसेस का मतलब है लीवर काफी हार्ड हो गया है। इसके होने के बाद पेशेंट्स के फॉर्म में स्वेलिंग आ जाती है और पेट में पानी भर जाता है। लीवर एक महत्वपूर्ण प्रोटीन Albumin बनाता है। Albumin एक प्रोटीन है जो कि हमारे ब्लड को bind करता है।
शरीर में Albumin कम होने से हमारे ब्लड वेसल से पानी निकलना शुरू हो जाता है वह जाकर पैरों में या पेट में इकट्ठा हो जाता है। सिरोसिस के पेशेंट्स के अंदर खाने की नली की नसें फूल जाती हैं जिसे हम Varix बोलते हैं। कई बार यह Varix फट जाते हैं जिससे मरीजों को खून की उल्टी आती है और साथ में मोशन या शौच भी कला आ सकता है। इन मरीजों का हीमोग्लोबिन कम हो जाता है और उन्हें ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ती है और एंडोस्कोपी करके डॉक्टर लिंग को कंट्रोल करते है। सिरोसिस के कुछ पेशेंट्स को बेहोशी भी आ जाती है। लीवर का एक फंक्शन है शरीर से अमोनिया को रिमूव करना।
अमोनिया हमारे शरीर में एक वेस्ट प्रोडक्ट होता है। प्रोसेस के पेशेंट्स ब्लड से अमोनिया नहीं निकाल पाते हैं इससे उनका अमोनिया लेवल बढ़ जाता है और यह जाकर हमारे ब्रेन को रेफर करता है जिससे मरीजों को बेहोशी आती है या फिर कई बार मरीज बहकी बहकी बातें भी कर सकते हैं। सिरोसिस के पेशेंट्स में मसल टूटना शुरू हो जाती हैं ताकि शरीर के अन्य हिस्सों को calorie मिल सके। इसलिए सिरोसिस के मरीज में जैसे शोल्डर मसल साइज कम हो जाता है। सिरोसिस के मरीजों का खून भी पतला हो जाता है। यह शरीर में कहीं भी चोट लगती है तो उससे bleeding हो सकती है।
इससे उनके शरीर पर कई बार लाल रंग के निशान पड़ जाते हैं। सिरोसिस होने के बाद कई बार हाथ भी लाल हो जाते हैं और स्किन के ऊपर छोटे-छोटे रेड स्पॉट बन जाते हैं। जब डॉक्टर सिरोसिस के पेशेंट्स को एग्जामिनड करते हैं तो उनके पैरों में स्वेलिंग होती है, पेट में स्वेलिंग होती है, लीवर हार्ड होता है और स्किन पर लाल रंग के स्पोर्ट्स मिलते हैं और हाथ भी लाल मिलते हैं और कई बार ऐसे मरीजों के हाथ भी काफी कापते हैं। सिरोसिस के पेशंट के ब्लड टेस्ट करवाते हैं ऐसे मरीजों का albumin कम होता है और पेट की ओर थोड़ा बढ़ जाता है।
PT और INR बताता है कि हमारा खून कितना गाढ़ा है। लीवर के मरीज में खून पतला हो जाता है । ब्लड के अंदर बिलुरुबिन और आईएनआर यह बताते हैं कि लिवर डिजीज कितनी सीरियस है। सिरोसिस के पेशेंट्स में प्लेटलेट भी कम हो जाते हैं। लीवर के मरीज के अंदर platelet काउन्ट भी कम हो जाता है। लिवर के अंदर प्रेशर बढ़ने से spleen या तिल्ली का साइज बढ़ जाता है।
लीवर के मरीज मे spleen साइज बढ़ जाता है और इससे ज्यादा मात्रा में प्लैट्लट खत्म होती हैं जिससे कि प्लेटलेट काउंट कम हो जाता है। जब हम सिरोसिस के पेशेंट का ultrasound करते हैं तो पेट में पानी मिलता है और लीवर की vein जिसे हम पोर्टल में बोलते हैं उसका साइज बढ़ जाता है। और साथ मे spleen का साइज भी बढ़ा हुआ मिलता है। Cirrhosis का इलाज करने के लिए डॉक्टर एक स्पेशल टेस्ट करते हैं जिसे हम फाइब्रोस्कैन बोलते हैं। उसे टेस्ट करता है कि लीवर कितना हार्ड है। यह एक अल्ट्रासाउंड की तरह का टेस्ट है।
जो इसका रिजल्ट मिलता है वह में नंबर में मिलता है। यदि fibroscan की वैल्यू 5 से कम है इसका मतलब लीवर बिल्कुल नॉर्मल है और यदि यह वैल्यू 13 या 15 से ज्यादा है। इसका मतलब लीवर हार्ड है । अल्कोहल पीने से कुछ मरीजों को लिवर कैंसर भी हो सकता है। ऐसे मरीजों में राइट साइड में या पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द हो सकता है। जब हम ब्लड टेस्ट करवाते हैं दो स्पेशल मारकर अल्फा-2 प्रोटीन जिसे हम एक्टिव बोलते हैं और एक्टिवा में इनकी वैल्यू काफी बढ़ जाती है। ऐसे मरीजों का जब सीटी स्कैन या MRI करवाते हैं तो डॉक्टर को लिवर में गांठ नजर आती है।
आइए अब हम समझते हैं कि हम एल्कोहलिक लिवर डिजीज को कैसे ठीक करते हैं। सबसे पहले मरीज को बिल्कुल भी शराब नहीं पीनी है। यदि मरीज बिल्कुल शराब बंद कर देता है तो उससे उनका लीवर इंप्रूव कर सकता है। कई बार मरीजों को शराब छोड़ने में दिक्कत आती है। ऐसे मरीजों को डॉक्टर दवाइयां देते हैं जिससे कि वह आराम से शराब छोड़ सके। उसके बाद डॉक्टर मरीज को अच्छा न्यूट्रिशन देते हैं। डॉक्टर ऐसी diet देते हैं जिसमें ज्यादा कैलरी की मात्रा हो और ज्यादा प्रोटीन हो। यदि मरीज के पैरों में swelling है तो डॉक्टर ऐसे मरीजों में नमक की मात्रा कम कर देते हैं। शराब छोड़ने से और अच्छी diet लेने से काफी मरीज ठीक हो जाते हैं।
यदि फिर भी इंप्रूवमेंट नहीं हो रही है ऐसे मरीजों को एडमिट करते हैं और उसके बाद डॉक्टर स्पेशल मेडिसिन शुरू करते हैं। यदि मरीज को शुरू से दिक्कत है जैसे कि खून की उल्टी आ रही है। ऐसी मरीजों मे एंडोस्कोपी करते हैं और खून की उल्टी को कंट्रोल करते हैं। अगर मरीज को बेहोशी आ रही है तो डॉक्टर बेहोशी को कम करने की दवाई देते हैं। कुछ मरीजों को इंफेक्शन हो जाती है। आम तौर पर यह बैक्टीरियल इन्फेक्शन होती है। ऐसी मरीजों का एंटीबायोटिक शुरू करते हैं। अल्कोहल का असर लिवर पर कम करने के लिए कुछ स्पेशल मेडिसिन भी यूज की जाती है।
यदि इन सबके बावजूद में सही नहीं होता है तो डॉक्टर लिवर ट्रांसप्लांट की सलाह देते है । आमतौर पर 7 दिन के लिए इलाज करते है । अगर 7 दिन के अंदर इंप्रूवमेंट नहीं आ रहा है तो ऐसे मरीजों ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है। यदि मरीज को कैंसर हो गया है तो उसका भी इलाज किया जाता है। कैंसर का इलाज उस स्टेट पे निर्भर करता है। Initial स्टेज के कैंसर को या तो transplant से इलाज करते है या तो लोकल liability therapy जिसे RFA बोलते है उससे इसका इलाज करते है ।
यदि कैंसर काफी फैल गया है तो ऐसी मरीजों का Chemotherpay से इलाज होता है। मुद्दा ये रहता है की कुछ लोग शराब पीते है और जानना चाहते है की liver कितना खराब है । ऐसे मरीजों के डॉक्टर कुछ blood test जैसे की liver function test, PTINR, Hepetitis B और C करवाते है और कुछ दूसरे test जैसे ultrasound और fibrescan करवाते है और जानते है की liver कितना काम कर रहा है ।