गुस्सा ना दिखाने से मेरा फायदा होगा या नुकसान ? क्या फैसला मेरे लिए सही रहेगा ? एक तीसरे इंसान की दृष्टि से सोचो कि इस समय मेरे लिए इस इंसान के लिए क्या बेहतर है। मान लीजिए कि आप अपनी मां से गुस्सा है तो आप एक तरह से व्यवहार करते हैं। अपने दोस्त से गुस्सा है तो दूसरी तरह से, आप अपने प्रोफेसर से गुस्सा है बिल्कुल अलग तरह से।
जरा सोचिए कि भविष्य में वह क्या रूप लेंगे। उसकी वजह से आपके साथ क्या-क्या हो सकता है कि जान जा सकती है, कि रिश्ता टूट सकता है, नौकरी जा सकती, कोई बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। विचार करो की भविष्य में जो इस छोटे से गुस्से की वजह से आपको मिलेगा। फिर एहसास करो कि मुझे वहां पर नहीं जाना, वैसा काम नहीं करना, जीवन को सही रखना है।
हमारे आसपास कई लोग कई चीज़ करेंगे जो हमे पसंद नहीं आएगी। मैं यह जरूर तय कर सकती हूं कि जो मैं चाहूं सिर्फ वही मेरे भीतर हो । अगर आप यह तय कर पाते कि आप जो चाहते हैं सिर्फ वही आपके भीतर हो तो आप गुस्सा चुनेंगे या खुशी। आप अपने लिए सबसे उचे स्तर का सुख चाहते है फिर ऐसा हो क्यों नहीं रहा।
उन लोगों के बारे में जो आपसे कुछ साल पहले यहां आए । आप परिवार मे सबको गुस्सा करते हुए देखते है तो आपको विचार आता है कीमै करता हु तो इसमे क्या गलत है । इसलिए उन्हें आपके जीवन में प्रेरणा स्रोत नहीं होना चाहिए। मैं चाहती हूं कि आप इस विचार की भावना को समझे। अगर कोई व्यक्ति यह तैय कर सकता है की आपके भीतर क्या होना चाहिए तो ये सबसे बड़ी गुलामी है ।
आपके आसपास क्या होता है शायद ये हम तय कर सके। यह आपके अलावा किसी को भी यह नहीं करना चाहिए की आपके भीतर क्या होता है। अगर आप तय करते हैं तो निश्चित रूप से आप इसे सबसे ऊंचे स्तर के सुख मे रखेंगे। आप गुस्से के साथ संघर्ष नहीं करेंगे। बात सिर्फ गुस्से, डर, तनाव या चिंता की नहीं है, उन्हें अलग-अलग न देखे।
मूल रूप से आपका मन आपसे निर्देश नहीं ले रहा है। क्योंकि आपको पता नहीं कि आप वास्तव मे क्या चाहते है। आपने रेडियो को चलाते हुए देखा है कभी कभी बंद हो जाता है फिर आप मारते है और बहुत से लोग इसका उपयोग इंसानों पर भी कर रहे हैं। कुछ काम नहीं करता तब और यह काम करने लगता है। तमिलनाडु मे कहावत है यानी अगर आप चार थप्पड़ मारेंगे तो सब ठीक हो जाएगा। यह ऐसे ठीक नहीं होता है।